फारूक अब्बास। इस देश में पत्रकारिता को लोकतन्त्र का चैथा स्तम्भ कहा जाता है। सामाजिक सरोकारों को व्यवस्था की दहलीज पर पहुॅचाने और प्रशासन की जनहितकारी नीतियों तथा योजनाओं को समाज के सबसे निचले तबके तक ले जाने का दायित्व का निर्वाह ही सार्थक पत्रकारिता है। गुलाम भारत में स्वतन्त्रता आन्दोलन के लिये जितना संघर्ष स्वतन्त्रता सैनानियों को करना पडा उतना ही संघर्ष पत्रकारों को भी करना पडा। मीडिया को समाज में हमेशा ही आदर की नजरों से देखा जाता है। पत्रकार और पत्रकारिता लोकतन्त्र से जुुडी लेकिन पिछले कुछ वर्षों में जो पत्रकारों पर जानलेवा हमले हो रहे हैं वो दुर्भाग्यपूर्ण हैं।
पत्रकारों पर आये दिन होने वाले हमले इस देश को गर्त में धकलने का काम कर रहे हैं वहीं मीडिया की स्वतन्त्रता कार्यशैली पर लगातार सवाल उठाये जा रहे हैं और इस पर शिंकजा कसने की कोशिश की जा रही है जो कि वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है। आज कल आये दिन पत्रकारों पर हो रहे हमले काफी निन्दनीय हैं लेकिन उससे भी ज्यादा निन्दनीय हमले के बाद शासन और प्रशासन का रवैया है। पत्रकारों पर जानलेवा हमले का दौर शुरू हो गया है। जो कि बेहद शर्मनाक है। भारत में पिछले साल जब पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या हुई तब सरकारें ने काफी वादे किये थे लेकिन वक्त के साथ सब जुमले बन गये। भारत में पिछले साल सात और और इस साल के शुरूआती चार महीनों में तीन पत्रकारों की हत्या कर दी गई। महत्वपूर्ण बात ये है कि इनमें से ज्यादातर पत्रकार भ्रष्टाचार की किसी स्टोरी पर काम कर रहे थे। बीते कुछ दिनांे से पत्रकारों को टारगेट कर हत्या की जा रही हैं। हाल ही में झारखण्ड के पलामू जिला के विश्रामपुर गाॅव में एक पत्रकार रामेश्वर केशरी की अज्ञात बदमाशों ने हत्या कर दी। घर वालों के मुताबिक रामेश्वर केशरी पिछले एक सप्ताह से तनाव में थे। वे किसी बडी स्टोरी पर काम कर रहे थे।
रामेश्वर केशर एक उदाहरण भर हैं पूरे देशभर मे पत्रकारों पर हमले हो रहे हैं। हाल ही में बिहार के सासाराम में दैनिक भाष्कर के एक पत्रकार विध्यांचल उपाध्याय पर घर लौटते वक्त कुछ बदमाशों ने गोली चला दी, जिससे वह गम्भीर रूप से घायल हो गये उन्हे आनन फानन में अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहीं दिल्ली के फतेहपुर बेरी इलाके में टैंकर से पानी की अवैध सप्लाई करनें वाले माफियाओं के काले कारनामों को कवर करने पहुॅचे आजतक के पत्रकार के साथ मारपीट की गई व उसे जान से मारने की कोशिश की गई। इस मामले में पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार तो किये लेकिन मुख्य आरोपियों को पुलिस बचा रही है। वहीं अमेठी के थाना जसंवत जायस के अन्तगर्त एक पत्रकार पर पुलिस के सामने ही जानलेवा हमला किया गया। चैकी इंचार्ज बहादुरपुर गिरीशदत्त पाण्डेय को गेहूॅ की कालाबाजारी की सूचना मिली जिस पर कार्यवाही करते हुये पुलिस ने दो ट्राॅली पकड ली। घटना को कवर करने गये पत्रकार पर चैकी इंचार्ज के सामने ही हमला किया गया। चैकी इंचार्ज इस हमले के बाद खुद अपनी जान बचाकर वहाॅ से टरक लिये। हाल ही में शाॅहजहाॅपुर के एक पत्रकार इमरान खाॅन पर चाकुओं से हमला किया। इमरान की हालत नाजुक है वे अस्पताल में भर्ती हैं। ये हमला उस समय किया गया जब वो कोटे की दुकान से राशन लेने जा रहे थे।
सरकार पत्रकारों पर हो रहे हमले को लेकर जरा भी चिंतित नजर नही आती है। वही पत्रकारों के हित में बने सैकडो पत्रकार संगठन भी कहीं नजर नही आते हैं। एक निष्पक्ष पत्रकार को निरोध की तरह इस्तेमाल किया जाता है , जब काम निकल जाता है या फिर जानपर बन आती है तो पत्रकार ही अपने पत्रकार साथी को छोड कर भाग जाते हैं। पत्रकाारिता को सिर्फ चैथा स्तम्भ कहने पर उनकी स्थिति में सुधार नही आने वाला है। लोकतन्त्र के तीनो स्तम्भ की तुलना में इस चैथे स्तम्भ के साथ सौतेला व्यवाहर किया जाता है। पत्रकारिता के हित की बाते करने से ही कुछ नही होता, उन्हे कानूनी अमलीजामा भी पहनाना पडता है। गौरी लंकेश की हत्या पर सरकार ने घडियाली आॅसू बहाये और जाॅच का आश्वासन दिया लेकिन अभी भी जाॅच प्रक्रिया बहुत धीमी गति से चल रही है वहीं उनके बाद भी देश में कई पत्रकारों की हत्याऐं व हमले हुये। लेकिन सरकार सिर्फ निन्दा करती रही है। ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाने में शासन पूरी तरह विफल रहा है।
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