विवेक तिवारी शूटआउट से सबक ले योगी सरकार, वरना भाजपा को बड़ी कीमत अदा न करनी पड़ जाये
लखनऊ में विवेक तिवारी हत्याकांड से योगी सरकार अब बैकफुट पर नजर आ रही है. क्योंकी इस घटना ने उत्तर प्रदेश पुलिस की ज्यादतियों और उत्पीड़न की घटनाओं पर पहले से चल रही चर्चा को जोरदार हवा दी है. इसी का असर है कि. मामले को शांत करने के लिए सरकार की तरफ से एसआईटी के गठन और ज्यूडिशियल इंक्वायरी के जरिए निष्पक्ष जांच के दावे किए जा रहे हैं. भारी दबाव के बीच मृतक विवेक की पत्नी को मुआवजे और सरकारी नौकरी देने की भी घोषणा की गई है.
अब देखने वाली बात यह है कि इस पुरे प्रकरण को देखा जाये तो इसमें गलती किसकी है. मेरे हिसाब से तो इसमें गलती उस सिपाही की इतनी नहीं जितनी अधिकारियों की है. क्योंकी अगर किसी बेलगाम घोड़े को भीड़ में छोड़ा जायेगा तो लाज़मी वह इंसानों के लिए जानलेवा साबित होगा.
दूसरी तरफ पुलिस विभाग अपनी गलतियों को छुपाने के किये इस हद तक गिर जाता है कि मृतक विवेक तिवारी के ही चरित्र पर सवाल खड़ा करके उसके चरित्र का हनन करने लगता है. उसके बाद एक बड़े अधिकारी को पुलिस की इस शर्मनाक करतूत पर माफी भी मांगनी पड़ती है. लेकिन कुछ अधिकारियों को इस बात का बिलकुल भी पछतावा नहीं होता. उन्हें तो इस बात का भी बिलकुल पछतावा नहीं है की उनके विभाग की गलती से एक निर्दोष की जान चली गई है, किसी का सुहाग उजड़ गया, 2 मासूम बच्चियों के सर से उनके पिता जो की उनके लिए एक अच्छे दोस्त थे उनका साया उनके सर से उठ गया. आखिर क्या गुजरी होगी उस पत्नी पर जिसे उसके पति ने फोन पर ये कहा हो की वह आज घर आने में थोडा लेट हो जायेगा, लेकिन उस पत्नी को क्या पता की किसी की गलती से उअसका पति हमेसा के लिए इतना लेट हो जायेगा की कभी घर ही नहीं पहुँच पायेगा.
पुलिस के लिए तो इससे शर्मनाक ये है कि वह इंसान जिसकी गलती की वजह से एक इंसान की जान चली जाती है उसकी खातिरदारी जमकर पुलिस विभाग द्वारा की जा रही. पुलिस विभाग के बड़े अधिकारी द्वारा कहा जा रहा है की आरोपी को जेल भेज दिया गया और वही आरोपी शाम को थाने में मीडिया को बयान देता है. और उसमे भी अपनी गलती स्वीकार करने की बजाय सफाई देता फिरता है.
इस पूरे प्रकरण से आम आदमी के मन में पुलिस को लेकर जो डर बैठा है उतना तो बदमाशों से भी नहीं था. इस सब का एक ही कारण है कि भाजपा द्वारा सुशासन लाने के चक्कर में अफसरों को खुली छुट देना. जिसके नतीजन लोकतंत्र पर अफसरतंत्र हावी हो गया. जब भी किसी आम आदमी की को किसी बात की समस्या होती है तो वह अपने द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि के पास जाता है. और उससे आशा करता है कि उसकी समस्या का हल हो जायेगा. लेकिल सरकार द्वारा मिली खुली छुट के नशे में चूर अधिकारी ही उस प्रतिनिधि की बात नहीं सुनते तो आम जनता की क्या सुनेगे.
अफसरों द्वारा अपनाये जा रहे इस रवैये से आने वाले समय में भाजपा को भरी नुकसान उठाना पड़ सकता है. क्योंकी अगर जनता ने एक बार भी भाजपा सरकार से अपना मन हटा लिया तो फिर भाजपा को तैयार रहना पड़ेगा लम्बे वनवास पर जाने के लिए.
विवेक तिवारी हत्याकांड के बाद मुझे सच में अखिलेश सरकार की याद आ गई उस सरकार में अपराध था लेकिन कम से कम आम आदमी को अपनी सुवाई के लिए भटकना नहीं पड़ता था. तब एक छोटे नेता में इतनी पावर थी की वह अपने लोगों के लिए जिले के किसी भी अधिकारी से भिड जाने को तैयार रहता था, और जीत भी जाता था. लेकिन अब सत्ताधारी पार्टी के नेता व मंत्री ही इस बात को लेकर अक्सर मीडिया के सामने बयान देते नजर आ रहे है की अधिकारी उनकी बात ही नहीं सुन रहे. इस समय प्रदेश में सरकार भाजपा भरोसे नहीं अफसर भरोसे चल रही है.
अब अगर भाजपा ने इससे सबक नहीं लिया तो वह दिन दूर नहीं कि जब जमीनी सत्र से जुड़े भाजपा नेताओ के आलावा जनता का मोह भाजपा से बिलकुल चला जायेगा और फिर पता नहीं की भाजपा प्रदेश में कितने दिनों के वनवास पर जाएगी. कही ऐसा न हो मेरी इस बात की बानगी 2019 में देखने को मिल जाये
शिवम् दीक्षित की एफबी वाल से
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